शनिवार, 28 सितंबर 2019

मेरी माँ


 मेरी माँ


मुझे दिया नहीं तुने इतना,
कि लगा सकूं मैं लाखों ।
मुझे समझ ना आता,
चमकीले दीयों पर खर्चा लाखों ।
डन्डे के बल पर किये गये,
चन्दे के क्या होते लाखों माँ ।
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।

पन्डाल के बाहर देखा मैंने,
फटेहाल कई बालक ।
पन्डाल के बाहर घुम रहे हैं,
बदतमीज़ कई युवक ।
पन्डाल के बाहर गिर रहे हैं,
कई बुजुर्ग और दिव्यांग ।
जलते हुए पन्डालों ने,
खड़े किये सवाल लाखों माँ।
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।

मैं तो उपवास करता नहीं,
ना करता हूँ किसी दिन पूजा ।
पर तेरे सिवा ना है मेरा,
और कोई दूजा माँ ।
लगा नहीं सकता घर में,
जुगनुएं मैं लाखों ।
क्या आ नहीं सकती तु,
गोबर से लिपे मेरे आंगन माँ । 
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।

बेसुरे चोंगों की ध्वनि, 
जगा देती है रातों में ।
बूढ़े और बीमार,
सो पाते नहीं हैं रातों में ।
क्या तुम सो पाती हो,
इन पन्डालों में रातों में ।
डरती तो तुम भी होगी,
                          धरती पर इन नौ रातों में ।
बेकार ही तो जाते हैं,
                           पूजा में तेरे लाखों माँ ।
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
                     जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।

अनिश कुमार

मंगलवार, 14 मई 2019

बेटे आ ना


बेटे आ ना

दिन निकल जाता था बिखरे खिलौने सजाने में
किताबें रखने, यूनिफॉर्म धोने और झगड़े सुलझाने में
दिन निकल जाता था उनकी फरमाइशें पूरी करने में
कुशन उठाने, तकिये सजाने, पर्दे ठीक करने में

दिन निकल जाता था, उनके बिखरे बाल सजाने, 
टिफ़िन देने, खाना बनाने और खिलाने में
दिन निकल जाता था उनकी बकबक सुनने 
उन्हें होमवर्क कराने और जल्दी सुलाने में

जब बच्चे छोटे थे तब गुजारे दो कमरों में
अब बहुत खाली हैं हम दोनों महलों जैसे घरों में
सुबह शाम आवाजें सुन लेते हैं फोन में
मम्मी ध्यान रखो अपना सुन रो लेते हैं मन में

खिलौने सालों से बन्द हैं अलमारियों में
कोई निकालने वाला है नहीं
सजावटें कब से रखीं है वैसी ही
कोई बिखेरने वाला है नहीं

मैं तो बात कर तुमसे रो भी लेती हूँ
मन हल्का करके सो भी लेती हूँ
पर तेरे पापा कुछ बोलते ही नहीं 
दर्द दिल में लिए ठीक से सोते भी नहीं

न्यूज का डिबेट तेज आवाज में सुनते
ध्यान अपना घड़ी और मोबाइल पर रखते हैं
तेरा फोन आते ही खुश होते पर मुझसे छुपाते
कैसा है, पुछकर खामोश हो जाते हैं

बेटे आ जा ना कि समय कटता नहीं हम दोनों से
आ ना कि फिर से तेरे बिखरे सामान सजा सकूँ
तेरे लिए खाना बना, हाथों से अपने खिला सकूँ
आओ कि फिर से तेरे खिलौने सजाऊँ, झगड़े सुलझाऊँ

बेटे आ जा अब घर सजता नहीं मुझसे
बेटे आ जा कि अब दिखता नहीं आंखों से
आओ ना कि तेरा तुतलाना सुनूं पोते से
आओ ना कि तेरा रोना गाना बजाना सुनूं पोते से

बेटे आ ना कि वक़्त कम हो रहा है 
शाम हो रही है अंधेरा छाने वाला है
आ ना कि अब लौट कर मत जाना
आ ना कि फिर तेरे बाल संवार सकूँ
आ ना कि मन भर तुझे निहार सकूँ
आ ना कि मन भर तुझे निहार सकूँ

अनिश कुमार

मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

सुख


सुख, क्या है यह सुख
कीचड़ में कूदता
बारिश में भींगता
कागज की कश्ती
बनाकर तैराता
बल्ला उठाकर 
धूप में भांजता
बगीचे से कच्चे
आम तोड़ता
तितली पकड़ता
पतंग उड़ाता
यही बचपन 
तो है सुख

पापा के कंधों पर
मेला घूमता
माँ के आँचल में
डरकर छुपता
चाचा से जिदकर
टाॅफी लेता
दादा की छड़ी पकड़
गाँव भर घुमाता
दादी के पास सोकर
कहानियाँ सुनता
बुआ संग छुपकर
इमली खाता
यही बचपन
तो है सुख

बगैर आंसू गिराये
जोर से रोता
ज़िद पूरी होते ही
खुलकर हंसता
खाने से ज्यादा
खिलौनों की चिंता
मेहमान के आते ही
समोसों की चिंता
बेतरतीब कमरे
न सजाने की चिंता
चिप्स का जुगाड़
कार्टून की चिंता
हंसता मुस्कराता
यही बचपन
तो है सुख

अनिश कुमार


रविवार, 28 अप्रैल 2019

चुनावी सभाएं


चुनावी सभाएं

हिन्दू मुस्लिम में बांटती चुनावी सभाएं
मैं अगड़ा मैं पिछड़ा बताती चुनावी सभाएं
जाति व्यवस्था प्रगाढ़ करती चुनावी सभाएं
वोट वास्ते समाज को तोड़ती चुनावी सभाएं
बापू देखो ना, कितना डराती हैं चुनावी सभाएं

लोकतंत्र में क्या ऐसी भी होंगी सभाएं
बापू तुमने तो कभी न कि ऐसी सभाएं
आओ ना फिर से एक बार अपने देश में
देखो किन शब्दों से की जा रही हैं सभाएं
मतदान का खत्म होता हर एक दौर रूलाती हैं
बापू देखो ना, कितना डराती हैं चुनावी सभाएं

ना जाने कौन लोग आते हैं इन सभाओं में
खुद के हाथों से सबकुछ लुटाते हैं सभाओं में
कांपता है दिल बांस बल्लियां मैदान में गिरते ही 
आज फिर जलेगा मेरा शहर शामियाना हटते ही
देश गढ़ती नहीं समाज तोड़ती हैं चुनावी सभाएं
बापू देखो ना, कितना डराती हैं चुनावी सभाएं

मंदिर मस्जिद कब तक वोटों की फैक्ट्री रहेंगे
बिजली सड़क पानी कब चुनावी मुद्दा बनेंगे
क्या अब कभी गरीब गुरबा भी नेता बनेंगे
अब ना जनता आएगी ना सिंहासन खाली होंगे
जो सबसे ज्यादा डरा सकेंगे वो राजा होंगे
साम दाम दंड भेद सिखाती हैं चुनावी सभाएं
बापू देखो ना, कितना डराती हैं चुनावी सभाएं

काश पाँच साल का हिसाब मांगती चुनावी सभाएं
काश पाँच साल का प्लान मांगती चुनावी सभाएं
काश एक चुनाव ऐसा होता जिसमें,
बच्चों के उज्वल भविष्य की कामना होती
काश एक चुनाव ऐसा होता जिसमें,
सौहार्द की संकल्पना होती
एक चुनाव तो ऐसा होता जिसमें,
ना धर्म होता ना जाति, ना अगड़ा होता ना पिछड़ा
बापू और गोडसे एक साथ सभा करते
फिर कभी ना डराती चुनावी सभाएं
फिर कभी ना डराती चुनावी सभाएं

अनिश कुमार

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

महात्योहार


महात्योहार

जोश है जुनून है
उमंग है तरंग है
खुशी है गम है 
राग है रंग है
जीत है हार है
यह महात्योहार है

उंगली में स्याह है
लोकतंत्र का गवाह है
वादों का हिसाब है
पोषकों की जीत है
शोषकों की हार है
यह महात्योहार है

आजादी का जश्न है
सबसे बड़ा रश्म है
पाँच साल का इन्तज़ार है
देश का प्यार है
आम जन का हथियार है
यह महात्योहार है

विश्व पटल में पहचान है
दुनिया इससे अनजान है 
भविष्य की परवाह है
विकास की राह है
उम्मीदें हजार है
यह महात्योहार है

अनिश कुमार

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

शहीद का प्यार


वो फूलों वाले दिन थे जब 
साथ मेरा तुम छोड़ गये
वो मिलने वाले दिन थे तब 
साथ मेरा तुम छोड़ गये
हे प्रिये, क्षमा, तुमसे मैं
इजहारे मुहब्बत कर ना सकी
हे भारत माँ के वीर 
क्यूँ मुझे अकेला छोड़ गये 

अपने आंखों में एक 
आंसू ना आने देंगे 
साथ देखे सपनों को 
आंखों से ना जाने देंगे
वीरगाथा सुनाएगी पुलवामा, 
तेरी हर पीढ़ी को
हे भारत माँ के वीर गर्व है, 
तुम अपना कर्ज उतार गये 

धन्य हो गई मैं तुमसे मुहब्बत करके
बता दिया तुने सच्चा प्रेम करके
तुम तो भारत माँ पर कुर्बान हो गये
मैं भी तो तेरी कुर्बानी पर कुर्बान हो गई

तेरे एक छुअन का अहसास 
कभी खत्म ना होगी
ता उम्र तेरी वर्दी मेरी 
मांग सजाए रखेगी
हर रात मैं सितारों में 
तुझे ढूंढा करूँगी
हे प्रिये, आना जरूर 
मैं राह तका करूँगी

मैंने चूड़ियाँ तोड़ी नहीं, बस उतार रखीं हैं
हर जन्म करूँगी इन्तज़ार सपने सजा रखीं हैं
इस बार छोड़ गये हो मुझे अकेला धरती पर
अगले जनम के लिए बेड़ियां बांध रखीं हैं

एक वादा तुमसे बस इतना रहेगा
शेर का बच्चा बब्बर शेर बनेगा
जिस भूमि पर तेरे जिस्म छलनी हुए
वहीं जाकर दुश्मन पर टूट पड़ेगा
वहीं जाकर दुश्मन पर टूट पड़ेगा

अनिश कुमार

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मेरी बहना


मेरी बहना

नन्ही परी, जो खेली 
थी मेरे गोद में
नन्ही परी, जो चहकती 
थी इस आंगन में
नन्ही परी, जो ऊँचे सपने 
देखी इस घर में
इक छोटी सी परी 
आज बड़ी हो गई

कभी लगा ही नहीं 
मेरी बहना बड़ी होगी
कभी लगा ही नहीं
वो दूर जाएगी
लड़ती झगड़ती
रोती हंसती
इक छोटी सी गुड़िया
आज बड़ी हो गई

कल वो चली जाएगी
अपने घर 
फिर, ये घर 
किसका है
ये दीवारें
ये आंगन
किसकी है
उसका अपना घर,
कौन सा है

जो कमरा उसका 
जो बिस्तर उसके
किसी को छुने नहीं देती
घर के हर चीज उसके
जिस बाग को
खुद सजाती
अपना हक जताती
किसका है

कल से वो पूछेंगे
क्या जवाब दूंगा
सीसे मुंह लटकाये 
क्या जवाब दूंगा
किचन के बर्तन
चाय की हर प्याली
नल से निकलते हर आंसू
कुछ कह ना सकूंगा

पर्दे लहराना छोड़ पूछेंगे
क्या जवाब दूंगा
पंखे घुमना छोड़,
टीवी के हर सीरियल
हर साज सज्जा
क्यारी के हर फूल
तुलसी के हर पत्ते
कुछ कह ना सकूंगा

आँखें भरीं हैं पर खुश हूँ
पिया के घर जायेगी
मन उदास है पर खुश हूँ
अपना घर बसायेगी
रिश्ते बदलेंगे नये बनेंगे
कुछ छूटेंगे कुछ जुड़ेंगे
दिल रो रहा पर खुश हूँ
नया संसार बसायेगी
मैं खुश हूँ कि
मेरी बहना खुश है

अनिश कुमार

बुधवार, 23 जनवरी 2019

युवा

युवा

न भाभा न कलाम बन रहें हैं युवा
न आभा न कमाल बिखेर रहे हैं युवा
विवेकानन्द की बातें हुई किताबी
शोध छोड़ विरोध में लगे हैं युवा

नम्बर के चक्कर में बीता है बचपन
सीमित संसाधन सिकोड़़ा है बचपन
उत्तमता की खोज भगदड़ है मचाई
बाजार के चक्रव्यूह में उलझ रहे हैं युवा

पाठशाला को बना दिया पाकशाला
पढ़ाई को छोड़ा कूट रहे हैं मशाला
आठवीं में चौथी की किताबें भी हैं झमेला
पता नहीं कालेजों में क्या पढ़ रहे हैं युवा

ज्ञानियों के बैठक में होती अज्ञानी बातें
कानों में ढक्कन लगाये गुजरती हैं रातें
आविष्कार में ऐसे ही नहीं पिछड़ रहे हैं
सरकारी तृष्णा के लिए लड़ रहे हैं युवा

डिग्रीयों में रह नहीं गया है अब दम
कोटा के चक्कर में हो रहा है बेदम
अपने पीछे क्या छोड़ जाएंगे हम
हुनरमन्द से बेहुनर हो रहे हैं युवा

क्षमता को अपने अनदेखा करके
किस्मत को कोसे हुए जी रहे हैं
नेटपैक से बेरोजगारी खत्म हो गई
स्क्रीन में आंखें फोड़ रहे हैं युवा

पेटेन्ट हो रहा नहीं एजेंट बन रहे हैं
उल्टे सीधे खाकर पेसेन्ट बन रहे हैं
ब्यापार हो गया है मोबाइल से जबसे
डिलीवरी बाॅय बने खुश हो रहे हैं युवा

नये खोज के सोच से परे जा रहे हैं
देश में परदेश के कूड़े भरे जा रहे हैं
विदेशों में अपने नायक ढूँढते
चीनी उत्पादों को ढो रहे हैं युवा
चीनी उत्पादों को ढो रहे हैं युवा


अनिश कुमार
(स्पेशल एजुकेटर) 

शनिवार, 19 जनवरी 2019

एक कविता दीपशिखा के नाम


दीपशिखा 



शिक्षा का एक तारा हूँ मैं,
नाम है मेरा दीपशिखा। 
दिव्यांगों का सहारा हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

बच्चों की मुस्कान हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
विशेष शिक्षकों की शान हूँ मैं,
 नाम है मेरा दीपशिखा।

 गतिहीनों को चलना सीखाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
बेजबानों को बोलना सीखाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

हर मन में शिक्षा का ज्योत जलाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
हर तन को काम सीखाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

मनोविज्ञान की प्रयोगशाला हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
कार्यात्मक शिक्षण का पाठशाला हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

कुछ मजबूत महिलाओं का परिश्रम हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
कुछ दिव्य बच्चों का संघर्ष हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 



अनिश कुमार

बुधवार, 16 जनवरी 2019

Poem on Buniyad Kendra


मैं हूँ बुनियाद 

डगमगाने लगे हैं पग
लड़खड़ाने लगे हैं डग 
सींचा जिसको खून से अपने
भूलाने लगे हैं सब जग

थकता शरीर दुखती नसें
आँखें भी धुँआ धुँआ हैं
बाल बच्चों की चुभती बातें
मन बिल्कुल ही अकेला है 

कुछ आस नहीं, कुछ प्यास नहीं
सूरज डूब रहा, बचा कुछ खास नहीं
कहाँ जाये, किससे कहे, नहीं कुछ याद
आओ ना, पास मेरे, मैं हूँ बुनियाद


समय ने दिया कष्ट ऐसा
भूलेगा नहीं जीवन जैसा
घूंघट में अब तक जी ली
पता नहीं अब बीतेगा कैसा

सरकारी सुविधाओं की चाह न थी
जब तक वो थे कुछ परवाह न थी
जाते ही उनके बदल गया सब
घर, गला, माँग सूना हुआ सब

पिता का छूटा साथ, किया माँ ने पराया
ससुर ने खींचा हाथ, घर हो गया किराया
कहाँ जांये किससे कहें, नहीं कुछ याद
आओ ना, पास मेरे, मैं हूँ बुनियाद


कुदरत का कहर ऐसा बरपा   
नाम मिल गया दिब्यांग
एक सुविधा पाने को लोग
पूछते कहाँ है प्रमाण

राहत की कुछ चाहत नहीं
हक है वो भी मिला नहीं
मेरे शारीरिक कमियों से
घर का सदस्य बना नहीं

बचपन दोस्तों के बिन बीता
जवानी सबका ताना सुना
कहाँ जांये किससे कहें, नहीं कुछ याद
आओ ना, पास मेरे, मैं हूँ बुनियाद

अनिश कुमार

रविवार, 13 जनवरी 2019

Love U Jindagi



जिन्दगी 

राहों से भटककर मंजिल तलाशा करते हैं 
घोर अंधेरे में उजाला तलाशा करते हैं 
काले बादलों में रोशनी तलाशा करते हैं 
डूबतेे शाहिल में तिनके तलाशा करते हैं 
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 


घुट घुट कर जिन्दगी जीया करते हैं 
सांसे लेकर हर पल मरा करते हैं 
हर राह पर मुर्दों सा चला करते हैं 
हर बात पर बेमन से हंसा करते हैं
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 

हर अन्जान चेहरे से मुस्करा कर मिला करते हैं 
हर अजीज से नजरें झुकाकर मिला करते हैं 
लोगों के सामने जबान बन्द ही रखा करते हैं 
अपनों से हर पल दूरी बनाया करते हैं 
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 


सपनों में हकीकत को देखा करते हैं 
हकीकत में ही सपने देखा करते हैं 
अपने लिए कांच का घर बनाया करते हैं 
हर बार खुद ही तोड़ दिया करते हैं 
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 


अनिश कुमार 

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

क्योंकि तुम नहीं हो



क्योंकि तुम नहीं हो

अपना शहर, अपने लोग, बस तुम नहीं हो
अपना सड़क, अपने मोड़, बस तुम नहीं हो
अपना नहर, अपने ठौर, बस तुम नहीं हो
अपना पहर, अपने दौर, बस तुम नहीं हो


हवाओं मे ठंडक है, बस तुम नहीं हो
फिजाओं मे सोंधी महक है, बस तुम नहीं हो
आंगन में पंक्षीयों की चहक है, बस तुम नहीं हो
आसमान मे अजीब चमक है, बस तुम नहीं हो

परदे को हवाएँ छुकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
पंखे की छाया घुमकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
कैलेंडर दीवार से टकराकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
पत्ते भी रात में सरसराकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो


मेरे हर सांस मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर आस मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर चाल मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर ख्वाब मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो

 अनिश कुमार 

बुधवार, 9 जनवरी 2019

True Love Story - फतिंगा


फतिंगा 

एक फतिंगा आया उड़कर, 
लगाता रहा दीये की चक्कर। 
पता ना था उसे इसका असर, 
फिर दीये ने पुछा फतिंगे से। 
क्यों लगा रहे हो मेरा चक्कर।। 


कहा फतिंगे ने उड़ते उड़ते, 
करता हूँ मै मुहब्बत तुझसे। 
कहा दीये ने गुस्सा होकर, 
दिखा तु अब मुझमें समाकर। 
जल जाओगे पास आकर।। 

पता था फतिंगे को उम्र है रातभर, 
इक रात के इस जीवन को।
जीया उसने बहुत ही जीभर,
किया मुहब्बत उसने इतना। 
कर ना सकेगा कोई जितना।।


 हर बार करीब आकर जला वो, 
पर इक बार भी उफ ना किया वो। 
सुबह जब धीमी हुई दीये की लौ, 
उसमें समा गया पागल हंसकर वो।। 

दोनों संग मे ही तो बुझ गये थे, 
अमर अपने प्रेम को कर गये थे।
फतिंगा दीये मे समाकर जला था, 
दीया भी तो फतिंगे को जलाकर जला था।। 

अनिश कुमार

सोमवार, 7 जनवरी 2019

पापा सुनो ना



पापा सुनो ना पापा

क्यों इतना गुस्साते हो,
क्यों मम्मी पर चिल्लाते हो।
कभी हंसके बात भी कर लो ना,
कभी कहीं घुमाकर लाओ ना।

मम्मी हर दिन नहलाती है, 
मम्मी हर दिन टहलाती है। 
पापा तुम भी आ जाओ ना, 
हाथों से अपने खिलाओ ना। 
पापा सुनो ना ▪▪▪▪▪ 

तुम भैया के स्कूल तो जाते हो,
कभी मेरे यहां भी आओ ना।
हर बच्चे के पापा आते हैं,
कभी उनसे हाथ मिलाओ ना।

भैया को जैसे खेलाते हो, 
भैया को जैसे पढ़ाते हो। 
कभी मुझको भी खेलाओ ना, 
कभी मुझको भी पढ़ाओ ना। 
पापा सुनो ना ▪▪▪▪▪ 

ये देखो मुझे मेडल मिला है,
नाम तुम्हारा अखबार मे छपा है।
अब तो तुम मुस्का दो ना,
गले से अपने लगा लो ना।

एक बार गोद मे ले लो ना, 
बाँहों में अपने झुलालो ना। 
कभी कंधे पर चढ़ालो ना, 
संग मेरे कुछ भी खेलो ना। 
पापा सुनो ना ▪▪▪▪▪ 

सुनो गौर से बात मेरी,
ना है कुछ अरमान मेरी।
जो सुबह जाग ना पाया तो,
फिर आएगी याद मेरी।

 पापा तुम इक बात सुनो, 
दिल की मेरी चीत्कार सुनो । 
हर जन्म जो लुंगा धरती पर, 
प्रथम क्रंदन करूँगा तेरे आंगन पर। 
पापा सुनो ना , पापा सुनो ना। 

अनिश कुमार

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

टाॅयलेट सड़क



टाॅयलेट सड़क 

सुरज की ढलती किरणें, उजाले को छुपा लेती है
तभी गाँव से कुछ ढके चेहरे, सड़क किनारे आती हैं
हाथों में लोटा होता है, आंखों में लज्जा होती है
दबे पांव, घुंघट में, भारी कदमों से आगे बढ़ती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

क्या चलता होगा मन में, जब गाड़ियों की लाइट पड़ती है
किससे कहे और क्या कहे, बस दर्द वो दिल में सहती है
हर रात बिस्तर पर याद करके, आंखें वो नम करती है
सुबह फिर वही जिल्लत होगी, सोचकर ही रुह काँपती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

बड़ी बड़ी गाड़ियाँ, काफिलों में उससे गुजरती है
लाल पीली नीली बत्ती, सायरन बजाती जाती है
हर आवाज को सुनकर, झुरमुट के पीछे वो डरती है
हर आहट पर सांसे, उसकी थम सी जाती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

क्या सोचती होगी, जब वह घर को लौटती है
आंगन में खड़े ट्रैक्टर और वाहनों को, देखती है
क्या सोचती होगी, जब टीवी पर सास बहू देखती है
खेतों और दलान पर, काम करते नौकरों को देखती है
जिस पथ पर भाई की, महंगी बाइक उड़ती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

ना देश, राज्य की राजधानियों, ना महलों से यह दिखती है
ना वातानुकूलित आॅफिसों ना पंचायतों, से यह दिखती है
ना घरवालों, ना मुखिया सरपंच, के आंखों से यह दिखती है
जिस पथ पर वह आती जाती, तिल तिल मरती है
हाँ वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

अनिश कुमार

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

Poem on Inclusive Education- ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ


ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

चल पकड़ हाथ, अब साथ साथ
स्कूल की सीढ़ी चढ़ते हैं
तु तिपहिए पर मै दो पैरों से
चल इक दौड़ लगाते हैं

चल टिफीन साथ मे खाएंगें
चल हुड़दंग खुब मचाएंगे
कभी पढ़ना लिखना होगा तो
कभी खेल तमाशे भी होंगे
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

तु देख नहीं  सकता तो क्या
मै दुनिया तुझे दिखलाऊंगा
जीवन के अंधेरी पथ पर
चलना मै सीख जाऊंगा

तु सुन नहीं सकता तो क्या
मै श्रवण यंत्र बना जाऊंगा
हर पल की आपाधापी  मे
आक्षेप सुनना सीख जाऊंगा
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

तु बोल नहीं सकता तो क्या
मै आवाज तेरी बना जाऊँगा
बेसुरी शोर भरी इस दुनिया मे
मीठी बातें कर पाऊँगा

जो समझ कुछ भी ना पाये तु तो
मै हर बात  समझाऊंगा
चाल बाजों से भरी जगत मे
इन्सान थोड़ा बन पाऊंगा
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

तु गिरकर उठता है हर दिन
मै खड़े खड़े ही गिरता हर दिन
जो तेरा साथ मिल जाएगा तो
जीवन भर पत्थरीली डगर पर
गिरकर उठना सीख जाऊँगा

तेरी सोच हमारे जैसी नहीं
तेरी नजर हमारे जैसी नहीं
तेरे काम समझ ना पाता हूँ
फिर भी बस यही गाता हूँ
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

अनिश कुमार

बुधवार, 2 जनवरी 2019

Poem On Disability-क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ



क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ

मैं तुमसा दौड़ नहीं सकता तो क्या,
दौड़ में अब हिस्सा भी ना लुं।
मैं तुमसा खेल नहीं सकता तो क्या,
खेल में अब हिस्सा भी ना लुं।

मैं तुमसा चल नहीं सकता तो क्या,
बाजार से अब घुम भी ना आऊँ।
मैं सीढ़ी चढ़ नहीं सकता तो क्या,
आॅफिसों में काम भी न करूँ।
तुम सोच लिए हो ऐसा,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

माना मैं तुमसा नहीं हूँ तो क्या,
सपने भी देखना छोड़ दूँ।
माना मैं सम्पूर्ण नहीं हूँ तो क्या,
अपनों को खुशी देना छोड़ दूँ।

माना मेरे पंख नहीं तो क्या,
उड़ने की उम्मीद भी ना रखुं।
सोच अपनी बदलोगे नहीं तो क्या,
मैं तुमको समझाना छोड़ दूँ।
तुम सोच लिए हो ऐसा,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

चाह नहीं तेरे सहारे की मुझको,
नजरों में सम्मान तो लाओ।
एक नजर तो डालो पहियों पर मेरी,
तेरे कदमों से तेज है चाल मेरी।
हथेली पर पड़ते छालों संग,
जीवन पथ पर कैसे दौड़ सकूंगा,
तुम सोच रहे हो ऐसा ही ना।

तुम आओ एक दिन साथ मेरे,
मैं अपना जीवन दिखलाता हूँ ।
सुबह सवेरे उठकर सबका ,
चाय खुद ही बनाता हूँ।
काम खत्म मैं खुद का करके,
ऑफिस भी कर आता हूँ।
तुम्हें आ रही होगी दया मुझपर,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

अनिश कुमार

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