मेरी माँ
मुझे दिया नहीं तुने इतना,
कि लगा सकूं मैं लाखों ।
मुझे समझ ना आता,
चमकीले दीयों पर खर्चा लाखों ।
डन्डे के बल पर किये गये,
चन्दे के क्या होते लाखों माँ ।
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।
पन्डाल के बाहर देखा मैंने,
फटेहाल कई बालक ।
पन्डाल के बाहर घुम रहे हैं,
बदतमीज़ कई युवक ।
पन्डाल के बाहर गिर रहे हैं,
कई बुजुर्ग और दिव्यांग ।
जलते हुए पन्डालों ने,
खड़े किये सवाल लाखों माँ।
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।
मैं तो उपवास करता नहीं,
ना करता हूँ किसी दिन पूजा ।
पर तेरे सिवा ना है मेरा,
और कोई दूजा माँ ।
लगा नहीं सकता घर में,
जुगनुएं मैं लाखों ।
क्या आ नहीं सकती तु,
गोबर से लिपे मेरे आंगन माँ ।
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।
बेसुरे चोंगों की ध्वनि,
जगा देती है रातों में ।
बूढ़े और बीमार,
सो पाते नहीं हैं रातों में ।
क्या तुम सो पाती हो,
इन पन्डालों में रातों में ।
डरती तो तुम भी होगी,
धरती पर इन नौ रातों में ।
बेकार ही तो जाते हैं,
पूजा में तेरे लाखों माँ ।
क्या तुम आती हो उन्हीं पन्डालों में,
जिनपर होते हैं खर्चा लाखों माँ ।
अनिश कुमार
4 टिप्पणियां:
achi kavita likhi hai apne hamara abhinandan
bhaiji achi kavita hai .
आपने एक भक्त की शिकायत व्यक्त की है वह सहरानीय है ।
परन्तु ऐसा नहीं , माँ आती सिर्फ पंडालों में ,
जो माँ का अनुसरण करता ,
जो माँ जैसा अपना दिल रखत|
उसकी सुऱक्षा का जिम्मा लेती हैं,
माँ तुफानो में ,
शुक्रिया जी |
एक टिप्पणी भेजें