बुधवार, 2 जनवरी 2019

Poem On Disability-क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ



क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ

मैं तुमसा दौड़ नहीं सकता तो क्या,
दौड़ में अब हिस्सा भी ना लुं।
मैं तुमसा खेल नहीं सकता तो क्या,
खेल में अब हिस्सा भी ना लुं।

मैं तुमसा चल नहीं सकता तो क्या,
बाजार से अब घुम भी ना आऊँ।
मैं सीढ़ी चढ़ नहीं सकता तो क्या,
आॅफिसों में काम भी न करूँ।
तुम सोच लिए हो ऐसा,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

माना मैं तुमसा नहीं हूँ तो क्या,
सपने भी देखना छोड़ दूँ।
माना मैं सम्पूर्ण नहीं हूँ तो क्या,
अपनों को खुशी देना छोड़ दूँ।

माना मेरे पंख नहीं तो क्या,
उड़ने की उम्मीद भी ना रखुं।
सोच अपनी बदलोगे नहीं तो क्या,
मैं तुमको समझाना छोड़ दूँ।
तुम सोच लिए हो ऐसा,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

चाह नहीं तेरे सहारे की मुझको,
नजरों में सम्मान तो लाओ।
एक नजर तो डालो पहियों पर मेरी,
तेरे कदमों से तेज है चाल मेरी।
हथेली पर पड़ते छालों संग,
जीवन पथ पर कैसे दौड़ सकूंगा,
तुम सोच रहे हो ऐसा ही ना।

तुम आओ एक दिन साथ मेरे,
मैं अपना जीवन दिखलाता हूँ ।
सुबह सवेरे उठकर सबका ,
चाय खुद ही बनाता हूँ।
काम खत्म मैं खुद का करके,
ऑफिस भी कर आता हूँ।
तुम्हें आ रही होगी दया मुझपर,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

अनिश कुमार

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