गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

मेरी बहना


मेरी बहना

नन्ही परी, जो खेली 
थी मेरे गोद में
नन्ही परी, जो चहकती 
थी इस आंगन में
नन्ही परी, जो ऊँचे सपने 
देखी इस घर में
इक छोटी सी परी 
आज बड़ी हो गई

कभी लगा ही नहीं 
मेरी बहना बड़ी होगी
कभी लगा ही नहीं
वो दूर जाएगी
लड़ती झगड़ती
रोती हंसती
इक छोटी सी गुड़िया
आज बड़ी हो गई

कल वो चली जाएगी
अपने घर 
फिर, ये घर 
किसका है
ये दीवारें
ये आंगन
किसकी है
उसका अपना घर,
कौन सा है

जो कमरा उसका 
जो बिस्तर उसके
किसी को छुने नहीं देती
घर के हर चीज उसके
जिस बाग को
खुद सजाती
अपना हक जताती
किसका है

कल से वो पूछेंगे
क्या जवाब दूंगा
सीसे मुंह लटकाये 
क्या जवाब दूंगा
किचन के बर्तन
चाय की हर प्याली
नल से निकलते हर आंसू
कुछ कह ना सकूंगा

पर्दे लहराना छोड़ पूछेंगे
क्या जवाब दूंगा
पंखे घुमना छोड़,
टीवी के हर सीरियल
हर साज सज्जा
क्यारी के हर फूल
तुलसी के हर पत्ते
कुछ कह ना सकूंगा

आँखें भरीं हैं पर खुश हूँ
पिया के घर जायेगी
मन उदास है पर खुश हूँ
अपना घर बसायेगी
रिश्ते बदलेंगे नये बनेंगे
कुछ छूटेंगे कुछ जुड़ेंगे
दिल रो रहा पर खुश हूँ
नया संसार बसायेगी
मैं खुश हूँ कि
मेरी बहना खुश है

अनिश कुमार

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