क्योंकि तुम नहीं हो
अपना शहर, अपने लोग, बस तुम नहीं हो
अपना सड़क, अपने मोड़, बस तुम नहीं हो
अपना नहर, अपने ठौर, बस तुम नहीं हो
अपना पहर, अपने दौर, बस तुम नहीं हो
हवाओं मे ठंडक है, बस तुम नहीं हो
फिजाओं मे सोंधी महक है, बस तुम नहीं हो
आंगन में पंक्षीयों की चहक है, बस तुम नहीं हो
आसमान मे अजीब चमक है, बस तुम नहीं हो
पंखे की छाया घुमकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
कैलेंडर दीवार से टकराकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
पत्ते भी रात में सरसराकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
मेरे हर सांस मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर आस मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर चाल मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर ख्वाब मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
अनिश कुमार
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