युवा
न भाभा न कलाम बन रहें हैं युवा
न आभा न कमाल बिखेर रहे हैं युवा
विवेकानन्द की बातें हुई किताबी
शोध छोड़ विरोध में लगे हैं युवा
नम्बर के चक्कर में बीता है बचपन
सीमित संसाधन सिकोड़़ा है बचपन
उत्तमता की खोज भगदड़ है मचाई
बाजार के चक्रव्यूह में उलझ रहे हैं युवा
पाठशाला को बना दिया पाकशाला
पढ़ाई को छोड़ा कूट रहे हैं मशाला
आठवीं में चौथी की किताबें भी हैं झमेला
पता नहीं कालेजों में क्या पढ़ रहे हैं युवा
ज्ञानियों के बैठक में होती अज्ञानी बातें
कानों में ढक्कन लगाये गुजरती हैं रातें
आविष्कार में ऐसे ही नहीं पिछड़ रहे हैं
सरकारी तृष्णा के लिए लड़ रहे हैं युवा
डिग्रीयों में रह नहीं गया है अब दम
कोटा के चक्कर में हो रहा है बेदम
अपने पीछे क्या छोड़ जाएंगे हम
हुनरमन्द से बेहुनर हो रहे हैं युवा
क्षमता को अपने अनदेखा करके
किस्मत को कोसे हुए जी रहे हैं
नेटपैक से बेरोजगारी खत्म हो गई
स्क्रीन में आंखें फोड़ रहे हैं युवा
पेटेन्ट हो रहा नहीं एजेंट बन रहे हैं
उल्टे सीधे खाकर पेसेन्ट बन रहे हैं
ब्यापार हो गया है मोबाइल से जबसे
डिलीवरी बाॅय बने खुश हो रहे हैं युवा
नये खोज के सोच से परे जा रहे हैं
देश में परदेश के कूड़े भरे जा रहे हैं
विदेशों में अपने नायक ढूँढते
चीनी उत्पादों को ढो रहे हैं युवा
चीनी उत्पादों को ढो रहे हैं युवा
अनिश कुमार
(स्पेशल एजुकेटर)