बुधवार, 23 जनवरी 2019

युवा

युवा

न भाभा न कलाम बन रहें हैं युवा
न आभा न कमाल बिखेर रहे हैं युवा
विवेकानन्द की बातें हुई किताबी
शोध छोड़ विरोध में लगे हैं युवा

नम्बर के चक्कर में बीता है बचपन
सीमित संसाधन सिकोड़़ा है बचपन
उत्तमता की खोज भगदड़ है मचाई
बाजार के चक्रव्यूह में उलझ रहे हैं युवा

पाठशाला को बना दिया पाकशाला
पढ़ाई को छोड़ा कूट रहे हैं मशाला
आठवीं में चौथी की किताबें भी हैं झमेला
पता नहीं कालेजों में क्या पढ़ रहे हैं युवा

ज्ञानियों के बैठक में होती अज्ञानी बातें
कानों में ढक्कन लगाये गुजरती हैं रातें
आविष्कार में ऐसे ही नहीं पिछड़ रहे हैं
सरकारी तृष्णा के लिए लड़ रहे हैं युवा

डिग्रीयों में रह नहीं गया है अब दम
कोटा के चक्कर में हो रहा है बेदम
अपने पीछे क्या छोड़ जाएंगे हम
हुनरमन्द से बेहुनर हो रहे हैं युवा

क्षमता को अपने अनदेखा करके
किस्मत को कोसे हुए जी रहे हैं
नेटपैक से बेरोजगारी खत्म हो गई
स्क्रीन में आंखें फोड़ रहे हैं युवा

पेटेन्ट हो रहा नहीं एजेंट बन रहे हैं
उल्टे सीधे खाकर पेसेन्ट बन रहे हैं
ब्यापार हो गया है मोबाइल से जबसे
डिलीवरी बाॅय बने खुश हो रहे हैं युवा

नये खोज के सोच से परे जा रहे हैं
देश में परदेश के कूड़े भरे जा रहे हैं
विदेशों में अपने नायक ढूँढते
चीनी उत्पादों को ढो रहे हैं युवा
चीनी उत्पादों को ढो रहे हैं युवा


अनिश कुमार
(स्पेशल एजुकेटर) 

शनिवार, 19 जनवरी 2019

एक कविता दीपशिखा के नाम


दीपशिखा 



शिक्षा का एक तारा हूँ मैं,
नाम है मेरा दीपशिखा। 
दिव्यांगों का सहारा हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

बच्चों की मुस्कान हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
विशेष शिक्षकों की शान हूँ मैं,
 नाम है मेरा दीपशिखा।

 गतिहीनों को चलना सीखाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
बेजबानों को बोलना सीखाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

हर मन में शिक्षा का ज्योत जलाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
हर तन को काम सीखाता हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

मनोविज्ञान की प्रयोगशाला हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
कार्यात्मक शिक्षण का पाठशाला हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 

कुछ मजबूत महिलाओं का परिश्रम हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 
कुछ दिव्य बच्चों का संघर्ष हूँ मैं, 
नाम है मेरा दीपशिखा। 



अनिश कुमार

बुधवार, 16 जनवरी 2019

Poem on Buniyad Kendra


मैं हूँ बुनियाद 

डगमगाने लगे हैं पग
लड़खड़ाने लगे हैं डग 
सींचा जिसको खून से अपने
भूलाने लगे हैं सब जग

थकता शरीर दुखती नसें
आँखें भी धुँआ धुँआ हैं
बाल बच्चों की चुभती बातें
मन बिल्कुल ही अकेला है 

कुछ आस नहीं, कुछ प्यास नहीं
सूरज डूब रहा, बचा कुछ खास नहीं
कहाँ जाये, किससे कहे, नहीं कुछ याद
आओ ना, पास मेरे, मैं हूँ बुनियाद


समय ने दिया कष्ट ऐसा
भूलेगा नहीं जीवन जैसा
घूंघट में अब तक जी ली
पता नहीं अब बीतेगा कैसा

सरकारी सुविधाओं की चाह न थी
जब तक वो थे कुछ परवाह न थी
जाते ही उनके बदल गया सब
घर, गला, माँग सूना हुआ सब

पिता का छूटा साथ, किया माँ ने पराया
ससुर ने खींचा हाथ, घर हो गया किराया
कहाँ जांये किससे कहें, नहीं कुछ याद
आओ ना, पास मेरे, मैं हूँ बुनियाद


कुदरत का कहर ऐसा बरपा   
नाम मिल गया दिब्यांग
एक सुविधा पाने को लोग
पूछते कहाँ है प्रमाण

राहत की कुछ चाहत नहीं
हक है वो भी मिला नहीं
मेरे शारीरिक कमियों से
घर का सदस्य बना नहीं

बचपन दोस्तों के बिन बीता
जवानी सबका ताना सुना
कहाँ जांये किससे कहें, नहीं कुछ याद
आओ ना, पास मेरे, मैं हूँ बुनियाद

अनिश कुमार

रविवार, 13 जनवरी 2019

Love U Jindagi



जिन्दगी 

राहों से भटककर मंजिल तलाशा करते हैं 
घोर अंधेरे में उजाला तलाशा करते हैं 
काले बादलों में रोशनी तलाशा करते हैं 
डूबतेे शाहिल में तिनके तलाशा करते हैं 
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 


घुट घुट कर जिन्दगी जीया करते हैं 
सांसे लेकर हर पल मरा करते हैं 
हर राह पर मुर्दों सा चला करते हैं 
हर बात पर बेमन से हंसा करते हैं
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 

हर अन्जान चेहरे से मुस्करा कर मिला करते हैं 
हर अजीज से नजरें झुकाकर मिला करते हैं 
लोगों के सामने जबान बन्द ही रखा करते हैं 
अपनों से हर पल दूरी बनाया करते हैं 
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 


सपनों में हकीकत को देखा करते हैं 
हकीकत में ही सपने देखा करते हैं 
अपने लिए कांच का घर बनाया करते हैं 
हर बार खुद ही तोड़ दिया करते हैं 
ऐ जिन्दगी तुमसे बेहद मुहब्बत करते हैं 


अनिश कुमार 

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

क्योंकि तुम नहीं हो



क्योंकि तुम नहीं हो

अपना शहर, अपने लोग, बस तुम नहीं हो
अपना सड़क, अपने मोड़, बस तुम नहीं हो
अपना नहर, अपने ठौर, बस तुम नहीं हो
अपना पहर, अपने दौर, बस तुम नहीं हो


हवाओं मे ठंडक है, बस तुम नहीं हो
फिजाओं मे सोंधी महक है, बस तुम नहीं हो
आंगन में पंक्षीयों की चहक है, बस तुम नहीं हो
आसमान मे अजीब चमक है, बस तुम नहीं हो

परदे को हवाएँ छुकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
पंखे की छाया घुमकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
कैलेंडर दीवार से टकराकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो
पत्ते भी रात में सरसराकर डरा जाती हैं, तुम जो नहीं हो


मेरे हर सांस मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर आस मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर चाल मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो
मेरे हर ख्वाब मे तुम हो क्योंकि तुम जो नहीं हो

 अनिश कुमार 

बुधवार, 9 जनवरी 2019

True Love Story - फतिंगा


फतिंगा 

एक फतिंगा आया उड़कर, 
लगाता रहा दीये की चक्कर। 
पता ना था उसे इसका असर, 
फिर दीये ने पुछा फतिंगे से। 
क्यों लगा रहे हो मेरा चक्कर।। 


कहा फतिंगे ने उड़ते उड़ते, 
करता हूँ मै मुहब्बत तुझसे। 
कहा दीये ने गुस्सा होकर, 
दिखा तु अब मुझमें समाकर। 
जल जाओगे पास आकर।। 

पता था फतिंगे को उम्र है रातभर, 
इक रात के इस जीवन को।
जीया उसने बहुत ही जीभर,
किया मुहब्बत उसने इतना। 
कर ना सकेगा कोई जितना।।


 हर बार करीब आकर जला वो, 
पर इक बार भी उफ ना किया वो। 
सुबह जब धीमी हुई दीये की लौ, 
उसमें समा गया पागल हंसकर वो।। 

दोनों संग मे ही तो बुझ गये थे, 
अमर अपने प्रेम को कर गये थे।
फतिंगा दीये मे समाकर जला था, 
दीया भी तो फतिंगे को जलाकर जला था।। 

अनिश कुमार

सोमवार, 7 जनवरी 2019

पापा सुनो ना



पापा सुनो ना पापा

क्यों इतना गुस्साते हो,
क्यों मम्मी पर चिल्लाते हो।
कभी हंसके बात भी कर लो ना,
कभी कहीं घुमाकर लाओ ना।

मम्मी हर दिन नहलाती है, 
मम्मी हर दिन टहलाती है। 
पापा तुम भी आ जाओ ना, 
हाथों से अपने खिलाओ ना। 
पापा सुनो ना ▪▪▪▪▪ 

तुम भैया के स्कूल तो जाते हो,
कभी मेरे यहां भी आओ ना।
हर बच्चे के पापा आते हैं,
कभी उनसे हाथ मिलाओ ना।

भैया को जैसे खेलाते हो, 
भैया को जैसे पढ़ाते हो। 
कभी मुझको भी खेलाओ ना, 
कभी मुझको भी पढ़ाओ ना। 
पापा सुनो ना ▪▪▪▪▪ 

ये देखो मुझे मेडल मिला है,
नाम तुम्हारा अखबार मे छपा है।
अब तो तुम मुस्का दो ना,
गले से अपने लगा लो ना।

एक बार गोद मे ले लो ना, 
बाँहों में अपने झुलालो ना। 
कभी कंधे पर चढ़ालो ना, 
संग मेरे कुछ भी खेलो ना। 
पापा सुनो ना ▪▪▪▪▪ 

सुनो गौर से बात मेरी,
ना है कुछ अरमान मेरी।
जो सुबह जाग ना पाया तो,
फिर आएगी याद मेरी।

 पापा तुम इक बात सुनो, 
दिल की मेरी चीत्कार सुनो । 
हर जन्म जो लुंगा धरती पर, 
प्रथम क्रंदन करूँगा तेरे आंगन पर। 
पापा सुनो ना , पापा सुनो ना। 

अनिश कुमार

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

टाॅयलेट सड़क



टाॅयलेट सड़क 

सुरज की ढलती किरणें, उजाले को छुपा लेती है
तभी गाँव से कुछ ढके चेहरे, सड़क किनारे आती हैं
हाथों में लोटा होता है, आंखों में लज्जा होती है
दबे पांव, घुंघट में, भारी कदमों से आगे बढ़ती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

क्या चलता होगा मन में, जब गाड़ियों की लाइट पड़ती है
किससे कहे और क्या कहे, बस दर्द वो दिल में सहती है
हर रात बिस्तर पर याद करके, आंखें वो नम करती है
सुबह फिर वही जिल्लत होगी, सोचकर ही रुह काँपती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

बड़ी बड़ी गाड़ियाँ, काफिलों में उससे गुजरती है
लाल पीली नीली बत्ती, सायरन बजाती जाती है
हर आवाज को सुनकर, झुरमुट के पीछे वो डरती है
हर आहट पर सांसे, उसकी थम सी जाती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

क्या सोचती होगी, जब वह घर को लौटती है
आंगन में खड़े ट्रैक्टर और वाहनों को, देखती है
क्या सोचती होगी, जब टीवी पर सास बहू देखती है
खेतों और दलान पर, काम करते नौकरों को देखती है
जिस पथ पर भाई की, महंगी बाइक उड़ती है
वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

ना देश, राज्य की राजधानियों, ना महलों से यह दिखती है
ना वातानुकूलित आॅफिसों ना पंचायतों, से यह दिखती है
ना घरवालों, ना मुखिया सरपंच, के आंखों से यह दिखती है
जिस पथ पर वह आती जाती, तिल तिल मरती है
हाँ वही वह पथ है, जो टाॅयलेट सड़क कहलाती है

अनिश कुमार

गुरुवार, 3 जनवरी 2019

Poem on Inclusive Education- ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ


ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

चल पकड़ हाथ, अब साथ साथ
स्कूल की सीढ़ी चढ़ते हैं
तु तिपहिए पर मै दो पैरों से
चल इक दौड़ लगाते हैं

चल टिफीन साथ मे खाएंगें
चल हुड़दंग खुब मचाएंगे
कभी पढ़ना लिखना होगा तो
कभी खेल तमाशे भी होंगे
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

तु देख नहीं  सकता तो क्या
मै दुनिया तुझे दिखलाऊंगा
जीवन के अंधेरी पथ पर
चलना मै सीख जाऊंगा

तु सुन नहीं सकता तो क्या
मै श्रवण यंत्र बना जाऊंगा
हर पल की आपाधापी  मे
आक्षेप सुनना सीख जाऊंगा
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

तु बोल नहीं सकता तो क्या
मै आवाज तेरी बना जाऊँगा
बेसुरी शोर भरी इस दुनिया मे
मीठी बातें कर पाऊँगा

जो समझ कुछ भी ना पाये तु तो
मै हर बात  समझाऊंगा
चाल बाजों से भरी जगत मे
इन्सान थोड़ा बन पाऊंगा
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

तु गिरकर उठता है हर दिन
मै खड़े खड़े ही गिरता हर दिन
जो तेरा साथ मिल जाएगा तो
जीवन भर पत्थरीली डगर पर
गिरकर उठना सीख जाऊँगा

तेरी सोच हमारे जैसी नहीं
तेरी नजर हमारे जैसी नहीं
तेरे काम समझ ना पाता हूँ
फिर भी बस यही गाता हूँ
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ
ऐ दोस्त मेरे अब तु भी आ

अनिश कुमार

बुधवार, 2 जनवरी 2019

Poem On Disability-क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ



क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ

मैं तुमसा दौड़ नहीं सकता तो क्या,
दौड़ में अब हिस्सा भी ना लुं।
मैं तुमसा खेल नहीं सकता तो क्या,
खेल में अब हिस्सा भी ना लुं।

मैं तुमसा चल नहीं सकता तो क्या,
बाजार से अब घुम भी ना आऊँ।
मैं सीढ़ी चढ़ नहीं सकता तो क्या,
आॅफिसों में काम भी न करूँ।
तुम सोच लिए हो ऐसा,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

माना मैं तुमसा नहीं हूँ तो क्या,
सपने भी देखना छोड़ दूँ।
माना मैं सम्पूर्ण नहीं हूँ तो क्या,
अपनों को खुशी देना छोड़ दूँ।

माना मेरे पंख नहीं तो क्या,
उड़ने की उम्मीद भी ना रखुं।
सोच अपनी बदलोगे नहीं तो क्या,
मैं तुमको समझाना छोड़ दूँ।
तुम सोच लिए हो ऐसा,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

चाह नहीं तेरे सहारे की मुझको,
नजरों में सम्मान तो लाओ।
एक नजर तो डालो पहियों पर मेरी,
तेरे कदमों से तेज है चाल मेरी।
हथेली पर पड़ते छालों संग,
जीवन पथ पर कैसे दौड़ सकूंगा,
तुम सोच रहे हो ऐसा ही ना।

तुम आओ एक दिन साथ मेरे,
मैं अपना जीवन दिखलाता हूँ ।
सुबह सवेरे उठकर सबका ,
चाय खुद ही बनाता हूँ।
काम खत्म मैं खुद का करके,
ऑफिस भी कर आता हूँ।
तुम्हें आ रही होगी दया मुझपर,
क्योंकि मैं व्हीलचेयर में हूँ।

अनिश कुमार

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