माँ छठ में आओ
कद्दू भात का वो स्वाद
फिर कभी ना मिल पाया माँ
खरना में वो खीर बांटना
फिर कभी ना कर पाया माँ
रातभर जगकर ठेकुआ
फिर कभी न बन पाया माँ
शाम सुबह का अर्घ्य देना
फिर कभी न हो पाया माँ
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में
बहू को नहीं पता, क्या है छठ
आकर उसे सीखाओ ना
फास्ट फूड बहुत खाया पोता
ठेकुआ उसे खीलाओ ना
सांझ भोर का सूरज न देखा
आकर उसे दिखाओ ना
डूबते सूर्य की पूजा होती है
आकर सबको बताओ ना
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में
यह घर तुझे कबुतर खाना लगता है
पर हर रिश्ते यहाँ भी हैं माँ
कई धर्म, कई संस्कृति
पर एक समाज यहाँ भी हैं माँ
पोंगल वैशाखी ओनम
हर पर्व हम भी मनाते हैं माँ
सोसाइटी से शामिल सभी होंगे
दोस्त यहाँ भी हैं माँ
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में
ईंख निम्बू सूप यहाँ भी मिलेंगे
सबकुछ है बाजार में
भर लेना दऊरा अपना उनसे
मिलेंगे जो बाजार में
साफ सुथरी हैं नदियाँ
गाद नहीं है तालाब में
ले जाऊंगा सबकुछ घाट पर
ढोकर मैं अपने सिर में
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में
ध्यान रखेंगे हो ना जाय गंदी
यहाँ की नदी तुमसे छठ में
अकेले नहीं दोगी तुम
अर्घ्य यहाँ छठ में
कितने सुन्दर होंगे पहाड़ों के बीच
उगते और डुबते सूर्य छठ में
ध्यान अच्छे से लगा सकोगी
एकांत नदी में इस बार छठ में
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में
अनिश कुमार