शनिवार, 29 अक्टूबर 2022

माँ छठ में आओ

 माँ छठ में आओ

कद्दू भात का वो स्वाद
फिर कभी ना मिल पाया माँ
खरना में वो खीर बांटना
फिर कभी ना कर पाया माँ
रातभर जगकर ठेकुआ
फिर कभी न बन पाया माँ
शाम सुबह का अर्घ्य देना
फिर कभी न हो पाया माँ
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में

बहू को नहीं पता, क्या है छठ
आकर उसे सीखाओ ना
फास्ट फूड बहुत खाया पोता
ठेकुआ उसे खीलाओ ना
सांझ भोर का सूरज न देखा
आकर उसे दिखाओ ना
डूबते सूर्य की पूजा होती है
आकर सबको बताओ ना
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में

यह घर तुझे कबुतर खाना लगता है
पर हर रिश्ते यहाँ भी हैं माँ
कई धर्म, कई संस्कृति
पर एक समाज यहाँ भी हैं माँ
पोंगल वैशाखी ओनम
हर पर्व हम भी मनाते हैं माँ
सोसाइटी से शामिल सभी होंगे
दोस्त यहाँ भी हैं माँ
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में

ईंख निम्बू सूप यहाँ भी मिलेंगे
सबकुछ है बाजार में
भर लेना दऊरा अपना उनसे
मिलेंगे जो बाजार में
साफ सुथरी हैं नदियाँ
गाद नहीं है तालाब में
ले जाऊंगा सबकुछ घाट पर
ढोकर मैं अपने सिर में
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में

ध्यान रखेंगे हो ना जाय गंदी
यहाँ की नदी तुमसे छठ में
अकेले नहीं दोगी तुम
अर्घ्य यहाँ छठ में
कितने सुन्दर होंगे पहाड़ों के बीच
उगते और डुबते सूर्य छठ में
ध्यान अच्छे से लगा सकोगी
एकांत नदी में इस बार छठ में
आ जाओ ना, मत करो तुम
इस बार छठ बिहार में

अनिश कुमार

बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

मेरी कविता

 

मेरी कविता


आवाज मेरी जब दब सी जाती
मुखर होती तब मेरी कविता
अनन्त भीड़ जब गुम कर देती
राह सूझाती मेरी कविता

संघर्ष पथ पर स्वत: जुड़ती
छाया बन जाती मेरी कविता
मेरे भावों को, उद्गारों को
पन्ने पर सजाती मेरी कविता

भाव बिह्वल जब जीवन करता
झर झर बहती मेरी कविता
छटा सुहानी जब भी होती
हंसती मुस्काती मेरी कविता

विचलित हूँ तो राह दिखाती
हमराही बनती मेरी कविता
उद्वेलित जब मन होता
कलम उठाती मेरी कविता

मरुभूमि में ठंढक पहुँचाती
मरुद्यान सी मेरी कविता
इंटरनेट पर सहमी सिकुड़ी
अमर हो रही मेरी कविता

अनिश कुमार

बुधवार, 5 अक्टूबर 2022

रावण पूछे

रावण पूछे

पूछ रहा है रावण देखो
जलते हुए अंगारों से
कब तक जलाओगे मुझको
इन ठंडी होती तापों से

हर घर में इक रावण बैठा,
तुम राम कहां से लाओगे
जब तक राम नहीं आता,
तुम ताप कहां से लाओगे

हर वर्ष जलाते हो मुझको,
क्यों पड़ी जरूरत ऐसी आन
खत्म करो कहानी अबकी बार,
ले आओ धनुष और बाण

है दम अगर तुझमें तो
'कोदंड' इस बार उठा लेना
और उसपर ब्रह्मास्त्र,
खींच जोर से चला देना

हो राम अगर तुम में कोई
तभी उठा तुम शस्त्र चलाना
वरना इस बार दशहरा में
खुद के दस चेहरों को जलाना

हे राम गलत मैंने किया
सीते की छाया उठा लाया
हर वर्ष जलाये हो मुझको
पर नष्ट कभी न कर पाया

हर वर्ष मुझे जलाते हो
हर दिन मैं आ जाता हूँ
कभी यहाँ कभी वहाँ
मैं अपना रुप दिखाता हूँ

अनिश कुमार

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