बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

मेरी कविता

 

मेरी कविता


आवाज मेरी जब दब सी जाती
मुखर होती तब मेरी कविता
अनन्त भीड़ जब गुम कर देती
राह सूझाती मेरी कविता

संघर्ष पथ पर स्वत: जुड़ती
छाया बन जाती मेरी कविता
मेरे भावों को, उद्गारों को
पन्ने पर सजाती मेरी कविता

भाव बिह्वल जब जीवन करता
झर झर बहती मेरी कविता
छटा सुहानी जब भी होती
हंसती मुस्काती मेरी कविता

विचलित हूँ तो राह दिखाती
हमराही बनती मेरी कविता
उद्वेलित जब मन होता
कलम उठाती मेरी कविता

मरुभूमि में ठंढक पहुँचाती
मरुद्यान सी मेरी कविता
इंटरनेट पर सहमी सिकुड़ी
अमर हो रही मेरी कविता

अनिश कुमार

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