शनिवार, 4 अप्रैल 2020

अनदेखा दुश्मन


अनदेखा दुश्मन

एक अनदेखा दुश्मन आज
कर रहा बैठ गले अट्टहास
सर्वनाश को तुला हुआ 
मानवता का उड़ा रहा परिहास

बन्द दरवाजे पुछ रहे हैं 
कर ली दुनिया मुट्ठी में ?
बहुत उड़ते थे पंख लगाये
गिर पड़े आकर मिट्टी में 

गिद्ध बने जो नोच रहे थे
कुदरत की सुन्दरता को
पलट लिया जब अपना रंग
तरस गये जीवन जीने को

बड़े शौक से खड़े किये थे
अट्टालिकाएं सपनों के
जी रहे हैं जीवन अपना
पीछे बन्द दरवाजों के

मार रहे हम पत्थर देवों को
मदर टेरेसा सह रही अपमान
उपर बैठे सोचे खुदा
सन्तानें क्यूँ कर रहे बदनाम

काल खटखटा रहा कुंडी
झरोखे से झांक रहा मुंडी
हड़प लिए डाड़ी पगडंडी
चूर चूर अंकल सैम घमंडी

बंद आंखों से बिश्व विजय का 
देख रहे थे सपना जो
अपने ही लोगों की लाशें
छुपा रहे हैं अब तो वो

मंदिरों में जो मरना चाहे, तो पट उसके खोल दो
मस्जिदों में गर जो चाहे, तो भीतर ही बन्द करो 
गुरुद्वारों के अन्दर भी, उन अभागों को जाने दो
जो जिस गत मरना चाहे, उस गत उसको मरने दो
जो जिस गत मरना चाहे, उस गत उसको मरने दो

अनिश कुमार

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