उखड़ रही हर सांस
लिए आंचल में बच्चों की लाश
देखो सिसक रही है
कि गंगा रो रही है
लाचार पड़ा इन्सान
कि तरसे जाने को श्मशान
रिश्ते मुंह चिढ़ा रही है
कि गंगा रो रही है
बेबस है हर प्राण
न जाने कब छूटे ये जान
अब लाशें बोल रही है
कि गंगा रो रही है
कभी निश्छल कभी निर्मल
सी बहती हुई निर्बल
मृत सी हो रही है
कि गंगा रो रही है
कब तक सहोगी वार
कि अब तो हो जाओ विकराल
सियासत हो रही है
कि गंगा रो रही है
अब तो भरो हुंकार
कि कब तक चुप सी बहेगी धार
लो सत्ता सो रही है
कि गंगा रो रही है
अनिश कुमार