सोमवार, 17 मई 2021

गंगा रो रही है

उखड़ रही हर सांस

लिए आंचल में बच्चों की लाश

देखो सिसक रही है

कि गंगा रो रही है


लाचार पड़ा इन्सान

कि तरसे जाने को श्मशान

रिश्ते मुंह चिढ़ा रही है

कि गंगा रो रही है


बेबस है हर प्राण 

न जाने कब छूटे ये जान

अब लाशें बोल रही है

कि गंगा रो रही है


कभी  निश्छल कभी निर्मल

सी बहती हुई निर्बल

मृत सी हो रही है

कि गंगा रो रही है


कब तक सहोगी वार

कि अब तो हो जाओ विकराल

सियासत हो रही है

कि गंगा रो रही है


अब तो भरो हुंकार

कि कब तक चुप सी बहेगी धार

लो सत्ता सो रही है

कि गंगा रो रही है


अनिश कुमार


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