शुक्रवार, 16 जून 2023

गाँव की बारिश

 

गाँव की बारिश


अब ना तो वो बारिश की बूदें

ना बनती कागज की कश्ती

गरज बरस कर गुजर जाते

ना सनती  कीचड़ में हाथें


गुरुजी से सतरंगी सुनकर

इन्द्र धनुष में रंग ढुंढते

पता नहीं वो बचपन कहाँ है

तरस रही है देखे आंखें


खपड़े की छत से टपकता पानी

भागकर  बाल्टी रख आते थे

सुबह सबेरे उठकर उससे

बारिश को मापा करते थे

बरसा के बीच पता नहीं कहाँ से

सांपों के गुच्छे आते थे

बांस की बनी कुमनियों से हम

मछलियाँ पकड़ कर लाते थे


अनिश कुमार

बारिश की पहली बूंद

बारिश की पहली बूंद


वो बारिश की पहली बूंद का धरा से मिलना

जैसे तपती धरती को देख आसमां का रोना

वो रोकर गरज कर चिल्लाकर बताना

बहुत दूर ही सही पर हूँ तो मैं तेरा ही अपना



वो बारिश की पहली बूंद का धरा से मिलना

जैसे वक्त बाद किसी बिछड़े का अपने से मिलना

वो मिलकर एकदूजे में समा जाना

और समाकर सोंधी खुश्बू फैलाना



वो बारिश की पहली बूंद का धरा से मिलना

जैसे किसी रुठे से शिकवे शिकायत मिटाना

शिकायत मिटाकर फिर एक हो जाना

और एक होकर हरियाली फैलाना



वो बारिश की पहली बूंद का धरा से मिलना

जैसे मिलन की चाह में धूल आंधियों से गुजरना

धूल आंधियों से गुजरकर अपनी हसरत को पाना

और उसे पाकर खुशियाँ फैलाना



अनिश कुमार

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