गाँव की बारिश
अब ना तो वो बारिश की बूदें
ना बनती कागज की कश्ती
गरज बरस कर गुजर जाते
ना सनती कीचड़ में हाथें
गुरुजी से सतरंगी सुनकर
इन्द्र धनुष में रंग ढुंढते
पता नहीं वो बचपन कहाँ है
तरस रही है देखे आंखें
खपड़े की छत से टपकता पानी
भागकर बाल्टी रख आते थे
सुबह सबेरे उठकर उससे
बारिश को मापा करते थे
बरसा के बीच पता नहीं कहाँ से
सांपों के गुच्छे आते थे
बांस की बनी कुमनियों से हम
मछलियाँ पकड़ कर लाते थे
अनिश कुमार