सोमवार, 31 दिसंबर 2018

यह मेरा नववर्ष नहीं


यह मेरा नववर्ष नहीं

धुंध के आगोश में ठिठुरती,
हड्डियां कंपकंपाती, सिकुड़ती
देर तक राख में, धाह तलाशती,
शर्द हवाओं से तीर चुभाती
सृष्टि को नष्ट करने पर तुली,
यह सुबह, मेरा नववर्ष नहीं
                  
                                       केक काटती, गिफ्ट बांटती
जीवन के वर्ष कम होने को,
खुशीयों का वो नाम देती
पटाखों के शोर से, जबरदस्ती
नये साल का आह्वान करती
ये आह्लाद उचित नहीं,
यह मेरा नववर्ष नहीं

आग तापती, राह ताकती
धुँआ धुँआ है वसुंधरा अपनी
दिन छोटी और रात बड़ी
बहुत कष्ट से जीवन कटती
ऐसे में कैसी खुशी, कैसा नववर्ष
यह मेरा नववर्ष नहीं

इतनी भी क्या जल्दी है
जरा शीत प्रकोप बीत जाने दो
जरा मौसम को अंगड़ाने दो
जरा बाग सुसज्जित हो जाने दो
रंग बिरंगे साज सजीले
सड़कों पर आ जाने दो

जब कोयल फाग सुनायेगी,
जब भौंरे राग सुनाएंगे
जब नव प्रस्फुटन हो जाएगा
जब शस्य श्यामल धरा अपनी,
दुल्हन सी सज जायेगी
जब फाल्गुन की पूर्णिमा,
रंग गुलाल उड़ाएगी

तब तुम आना पास प्रिय
पलाश के फूल ले आना प्रिय
प्रकृति के संग संग,
सतरंगी हो जाएंगे
हम भी नववर्ष मनायेंगे
वह नववर्ष हमारा होगा
वह नववर्ष हमारा होगा

अनिश कुमार


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